सोमवार, 4 फ़रवरी 2008

हमारे प्रकाश भाई..

जनसत्ता का कोलकता से एडिशन शुरू हुवा.श्याम सुन्दर आचार्य इसके संपादक बने.नए तेवर का अख़बार था जनसत्ता .जल्दी ही जनसत्ता पूरे बंगाल कि पहली पसंद बन गया.इस पर हर रविवार सबरंग भी जनसत्ता के साथ फ्री आता था.सिलीगुडी में जनसत्ता शाम को मिलता था.उस समय भी इसकी काफी डिमांड रहेती थी.जनसत्ता में किसी कि खबर प्रकाशित हो जाना बड़ी बात थी.प्रकाश चंदालिया कि तो हर दूसरे दिन नाम से स्टोरी आती थी.हम उस समय पढाई कर रहे थे.अख़बार में किसी रिपोर्टर का नाम आता तो बहुत आनंद आता.उस समय न्यूज़ के कारन प्रकाश जी को जाना.अटल बिहारी वाजपेयी उस समय कोलकता आये थे.मुझे वह खबर आज भी याद है कि प्रकाश जी इंटर व्यू के लिए गए अटल जी ने बात नही कि पर प्रकाश जी से कहा फोटो ले लो.प्रकाश जी कि फर्स्ट पेज कि स्टोरी बनी कि अटल केसे तनाव में थे और क्या कर रहे थे.सायद ५०० वर्ड कि स्टोरी थी.पढ़ कर आनंद हुवा कि खबर कैसे बनाईं जाती है.इसी खबर से उस समय काफी सिखने का अवसर मिला.प्रकाश जी के यह खबर मेरे लिए हमेशा माप दंड रही है.प्रकाश जी को पहली बार सिलीगुडी में देखा जब वह जनसत्ता के लिए तीन बीघा को ले कर चल रहे आंदोलन को कवर करने आये थे.पहली बार हाथ मिलाया.सयाद प्रकाश जी को यह बात याद नही है.गजब लगा के इतना बडे रिपोर्टर से मिला.उस समय उनके साथ पंचंज्य के अशोक श्रीवास्तव भी थे.इसके बाद जब भी जनसत्ता में उनकी स्टोरी पढता तो खुद में महसूस करता कि इतने बडे रिपोर्टर से मिला हूँ.जनसत्ता के उस समय गजब कि धूम थी.सिलीगुडी में प्रभकर मणि तिवारी जनसत्ता के रिपोर्टर थे.प्रकाश जी ने कुछ साल बाद जनसत्ता को टाटा कर दिया.कोलकता गया तो पता चला कि महानगर नमक शाम के अख़बार ने काफी धूम मचा रखी है.बड़ा बाजार के एक बुक स्टाल से अख़बार ख़रीदा .पढा। संपादक थे प्रकाश चंदालिया.ऑफिस थी ३ ओल्ड कोर्ट हौस स्ट्रीट.प्रकाश जी मिलने कि इच्छा तो थी.एक सुबह चला गया उनके ऑफिस.ऑफिस काफी बड़ा था.एक बुक स्टोर में महानगर का ऑफिस था.ऑफिस जा कर कहा कि प्रकाश जी से मिलना है.कुछ देर बाद चैंबर में था.पहली बार उन से मिल रह था.बहुत टेंशन में था.

कोई टिप्पणी नहीं: